मन्थन
आओ हम सब मंथन करें, राष्ट्रहित में चिंतन करें। सभी बाधाओं का मर्दन करें, जो अब तक न हुआ हो, उसके लिए हम सब गर्जन करें। आओ हम सब मंथन करें।। सोचें! देश के लिए सोचें। दोस्तों! वैसे तो विद्यालय काफी कुछ कहता है पर शायद हमने सुनना बंद कर दिया है। आज विद्यालय, विद्यालय न होकर मात्र कक्षा-कक्ष रह गए है। ऐसा क्या हो गया है? इन कुछ वर्षों में कि शिक्षा स्तर के साथ नैतिक जिम्मेदारी, माननीय मूल्यों का भी हनन हो गया। शिक्षा के दो महत्वपूर्ण लक्ष्य होते हैं - एक बुद्धिमत्ता वह दूसरा चरित्र निर्माण। पर आज शायद शिक्षा का एकमात्र लक्ष्य पैसे कमाना है चाहे जैसे। इसकी बुनियाद कहां बनती है अगर मैं गलत नहीं हूं तो शायद प्राथमिक शिक्षा से ही बनती है। प्राथमिक शिक्षा बच्चों की शिक्षा होती है, जहां से पढ़ लिखकर बच्चे उच्च प्राथमिक स्कूलों में जाते हैं। प्राथमिक शिक्षा में वह बच्चे आते हैं जो घर से बहुत कुछ सीख कर आते हैं मगर स्कूल उनका बोलना, उनका हंसना, उनकी सोच, उनकी उड़ान सब छीन लेता है। प्राथमिक शिक्षा जिसे सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। वही सबसे खराब हमारे भारत भूमि में चल रहा है। सबसे सुंदर बाल