पाठशाला बना मधुशाला

ये तूफ़ान तू अपनी खेर कर...
हम तो लहरें हैं, तेरे आने पे हम और बड़े हो जाते हैं।
ये सोच ही है जो हर पल आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। विकट परिस्थितियों में भी हमें लक्ष्य से नही हटना चाहिए। क्योकि सच्चा योद्धा वही है जो रण में डटा रहे।
परिषदीय विद्यालय व उसके प्रांगण को अक्सर लोग अपनी गन्दी गतिविधियों को करने का माकूल जगह समझतें हैं। बीवी भाग गयी तो देसी पीने के लिए विद्यालय के कक्षा कक्ष के दरवाजे पे लगे ताले को तोड़केे कमरे में चखने के साथ चार यारों के साथ ग़म बाटलें।
ग्रीष्मकालीन अवकाश के पश्चात जब विद्यालय पहुचे तो एक कमरे का ताला तोड़के कुछ लोगों ने पाठशाला को मधुशाला में परिवर्तित कर दिया।
प्रथम दिवस विद्यालय पहुँचे तो देखे एक कमरे का ताला टूटा पड़ा है और अंदर शीशियाँ पड़ी हैं। गाँव में भ्रमण करके लोगों को जागरूक किया गया व उनकी विद्यालय के प्रति ज़िम्मेदारी से अवगत कराया गया।
मगर लगता है कुछ लोगों ने सोचा होगा क्यों न ज़िम्मेदारी को ही खत्म कर दिया जाये। अगले दिन सर्व शिक्षा अभियान रैली निकालना था, पर ये क्या आज तो कुछ ज्यादा ही नुकसान कर दिया गया।
विद्यालय के गेट में लगे छड़ो को काट ले गए ताकि कबाड़ में बेच कर रात का इंतेजाम हो सके। विद्यालय में बच्चों द्वारा सजाया गया टी०एल०एम्० कक्ष के ताले को तोड़कर उसमे रखें कुछ tlm उठा लेगये और कुछ फाड़-चीथ डाले।
ये देखकर हम सभी शिक्षक ही नही बच्चे भी काफी क्रोधित और निराश हुए। मगर हमें इसमें भी एक नयी रौशनी और उम्मीद नज़र आई। बच्चों में अब विद्यालय के प्रति अपनेपन का भाव उत्पन्न हो चूका था। हम सभी ने सर्व शिक्षा अभियान रैली को और धमाकेदार करने का निर्णय लिया।
बच्चों ने चार्ट पेपर पर स्लोगन लिखकर पतंगों पर 1
चिपका दिए। कितना काटोगे? तेज़ हवाओं में हम और ऊँचे उड़ेंगे। गुब्बारे सभी के हाथों में दिए गए। दुम्बल्स के साथ ताल मिलाते हुए हम सब गाँव में निकले। लोगों को अपनी बात भी बताये और उन्हें एहसास भी कराया की उनकी इस दयनीय स्थिति का कारण उनका गैरजिम्मेदाराना सोच और निम्न सोच हैं। ग्राम प्रधान जी ने लोगों को जागरूक किया और विद्यालय के विकास में सहयोग की अपील की। बच्चों को उनके द्वारा फल बाँटे गए।
इस बात का विश्वास है की नई पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल है और आज नही तो कल इस गाँव की स्थिति भी बदलेगी।

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