मरधु बंधु
मरधु बंधु
आज अतीत के पन्नों से दो ऐसे जुड़वां भाइयों की वीरगाथा लेकर आए हैं, जिन्होंने अपने पराक्रम से बरतानिया हुकूमत को हिलाकर रख दिया था।
हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में जन्में स्वतंत्रता सेनानी पेरियार मरुधु और चिन्ना मरुधु, जिन्हें मरुधु पांडियार और मरुधु भाई भी कहा जाता है।
इन्होंने आरकोट के नवाब व अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई जीती। पेरियार मरुधु और चिन्ना मरुधु, गुरिल्ला युद्ध तकनीक के विशेषज्ञ थे। उन्होंने वल्लारी का आविष्कार किया, एक ऐसा हथियार जिसमें लकड़ी या लोहे के कोण पर दो अंग होते हैं, यह boomerang का एक प्रकार है। इन्होंने इस हथियार का सफलतापूर्वक उपयोग किया। सन 1780 में मरुधु पांडियार ने रानी वैल्यूनचियार को अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई जीतने और तमिलनाडु में शिवगंगई राज्य को फिर से हासिल करने में मदद की थी। अंतिम युद्ध की जीत रानी के सेना की महिला विंग कमांडर कुयली द्वारा सुगम की गई थी। इस महिला ने ब्रिटिश गोला बारूद की दुकान में आग की लपटों में खुद को जलाकर अंग्रेजों की गोला बारूद को नष्ट कर दिया। कुयली की कहानी "Saffron swords part 1" नामक पुस्तिका में वर्णित है।
मरुधु पांडियार ने शिवगंगई साम्राज्य के प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्हें कमांडर के रूप में भी नियुक्त किया गया। अंग्रेजों के खिलाफ़ मरुधु भाइयों की लड़ाई बेरोकटोक जारी रही। वे दुश्मनों के खिलाफ़ कई झड़पों में शामिल थे, उन्होंने स्वतंत्रता सेनानियों की भी मदद की। उन्होंने अपने राज्य के लोगों को अंग्रेजों को भगाने, अंतिम सांस तक लड़ने और ब्रिटिश वर्चस्व को कभी स्वीकार नहीं करने के लिए प्रेरित किया। आखिरकार एक गद्दार के कारण मरुधु भाइयों को अंग्रेजों ने पकड़ लिया और शिवगंगई में तिरुपुथुर के किले में 24 अक्टूबर 1801 को फांसी दी गयी।
तो दोस्तों, 1857 की क्रांति में जो ज्वाला धधकी थी उसकी चिंगारियां ऐसे ही भारत के तमाम कोने-कोने से निकल रही थी। सन 1801 की ये घटना किसी क्रांति से कम नहीं थी, मगर कहीं न कहीं इतिहास के पन्नों में वह स्थान नहीं मिला जो इसे मिलना चाहिए था और लोगों ने हमें क्या बताया कि हमें आजादी बिना खड़ग, बिना ढाल की ही मिली है। धर्म और मातृभूमि की रक्षा करने वाले ऐसे योद्धाओं को शत शत नमन.....!
जय हिन्द
Comments
Post a Comment